रघुनंदन, दीनदयाल हो तुम
श्री राम तुम्हारी जय होवे
राजा राम तुम्हारी जय होवे
दीननाथ तुम्हारी जय होवे
रघुनाथ तुम्हारी जय होवे
सिया राम तुम्हारी जय होवे
रघुनंदन, दीनदयाल हो तुम
श्री राम तुम्हारी जय होवे
राजा राम तुम्हारी जय होवे
Narci's Verse:
प्रभु तुम ही जानो मेरे पाप और पुण्य
प्रभु तेरे बिना तेरा दास पूरा शून्य
पैरों को लगा दो मेरी पापी इस काया से
हृदय बना शिला मेरी जैसे अहिल्या
सांसों का ये सेतु बस तेरे लिए टिका है
राम सिया बिना मोहे कुछ नहीं दिखा है
बैठा बन शबरी मैं राम पर पर सुनो
बेर करूँ झूठे कैसे, पापी मेरी जीभ है
पाने को ना प्रभु, हूँ जमाने की मैं दौड़ में
जीता हूँ मैं त्रेता ये कलयुग छोड़ के
जैसे जटायु के मिले मुझे मौत
सर मेरा पड़ा हो आपकी ही गोद पे
पैरों को हाँ धो के पानी मुझको भी पीना है
माना बजरंगी सा चीरा नहीं सीना है
फिर भी ये दास करे इतनी ही मांग
चौदह सालों का वो समय मुझको भी जीना है
एक मुकुट तुम्हारे सिर सोहे, कानों में कुंडल मन मोहे
गुण शील तुम्हारे जग जाने, रघुनाथ तुम्हारी जय होवे
रघुनंदन, दीनदयाल हो तुम
श्री राम तुम्हारी जय होवे
राजा राम तुम्हारी जय होवे
Siddharth's Verse:
कनक के जैसी मुस्कान को धरे हुए
कीर्तन में ध्यान नाम पे करे हुए
बल, बुद्धि और चेतना से ध्यान किया रूप का
तो सारे दुख-दर्द ये परे हुए
दुख-सुख को समान मान के
सिया-राम को बुद्धि का कमान मान के
एक तीर प्रेम भक्ति का चला के देखना है
ऐसे राम ना मिलेंगे जो बैठा आराम के...
सहारे
चरण धूल पत्थरों को तारे
सांस भी ये चले राम-नाम के सहारे
लोक सृष्टियों में तुम, कानों की संख्या में तुम
जीव बुद्धि के परे अनंत रूप हैं तुम्हारे
भजे व्रजैक-मण्डनं समस्त-पाप-खण्डनं
स्व-भक्त-चित्त-रंजनं
है रूप मेरे राम का
दृग्-अन्त-क्रान्त-भङ्गिनं सदा-सदालि-सङ्गिनं
दिन-प्रतिदिन नवं नवं
भजु मैं भजन आपका
कर धनुष सदा और शर धरे, बन काल सदा दुष्टन तारे
मुनि संतों के रखवाले हो, रघुनाथ तुम्हारी जय होवे
रघुनंदन दीनदयाल हो तुम
श्री राम तुम्हारी जय होवे
राजा राम तुम्हारी जय होवे
रघुनंदन दीनदयाल हो तुम
श्री राम तुम्हारी जय होवे
राजा राम तुम्हारी जय होवे